Friday, August 6, 2010

मुझे क्षमा करना

मुझे क्षमा करना!

मैं अपनी और अपनी तमाम मुस्लिम बिरादरी की ओर से आप से क्षमा और माफ़ी माँगता हूँ जिसने मानव जगत के सब से बड़े शैतान (राक्षस) के बहकावे में आकर आपकी सबसे बड़ी दौलत आप तक नहीं पहुँचाई, उस शैतान ने पाप की जगह पापी की घृणा दिल में बैठाकर इस पूरे संसार को युद्ध का मैदान बना दिया। इस ग़लती का विचार करके ही मैंने आज क़लम उठाया है कि आप का अधिकार (हक़) आप तक पहुँचाऊँ और निःस्वार्थ होकर प्रेम और मानवता की बातें आपसे कहूँ।


वह सच्चा मालिक जो दिलों के भेद जानता है, गवाह है कि इन पृष्ठों को आप तक पहुँचाने में मैं निःस्वार्थ हूँ और सच्ची हमदर्दी का हक़ अदा करना चाहता हूँ। इन बातों को आप तक न पहुँचा पाने के ग़म में कितनी रातों की मेरी नींद उड़ी है। आप के पास एक दिल है उस से पूछ लीजिये, वह बिल्कुल सच्चा होता है।